15 वीं और 16 वीं शताब्दी के धार्मिक आन्दोलन

15वीं और 16वीं शताब्दी के दौरान भारत में कई महत्वपूर्ण धार्मिक आंदोलनों ने उभरकर सांस्कृतिक और सामाजिक परिदृश्य को आकार दिया। ये आंदोलनों विभिन्न धार्मिक परंपराओं और विचारधाराओं के आधार पर उत्पन्न हुए और समाज में गहरा प्रभाव डाला।

15वीं शताब्दी के धार्मिक आंदोलनों

  1. भक्त आंदोलन
    • संदर्भ: 15वीं शताब्दी में भारतीय उपमहाद्वीप में भक्ति आंदोलन ने उन्नति की, जिसमें विभिन्न संतों ने भक्ति और प्रेम के माध्यम से एकात्मता और सामाजिक सुधार का संदेश दिया।
    • प्रमुख संत:
      • संत कबीर (1440-1518):
        • विचारधारा: कबीर ने कर्म और प्रेम के माध्यम से ईश्वर की पूजा की। उन्होंने हिंदू और मुस्लिम दोनों धार्मिक प्रथाओं की आलोचना की और सरलता और एकता का प्रचार किया।
        • काव्य: उनके भजनों और कविता ने भक्ति आंदोलन को लोकप्रिय बनाया।
      • संत तुलसीदास (1532-1623):
        • विचारधारा: तुलसीदास ने रामभक्ति का प्रचार किया और “रामचरितमानस” जैसी महत्वपूर्ण काव्य कृतियाँ लिखीं।
        • काव्य: उनकी रचनाओं ने राम के जीवन और भक्ति को विस्तार से प्रस्तुत किया।
  2. सिख धर्म की स्थापना
    • संस्थापक: गुरु नानक देव (1469-1539)
    • विचारधारा: सिख धर्म ने एकेश्वरवाद, धार्मिक सहिष्णुता, और सामाजिक समानता पर जोर दिया। गुरु नानक ने जातिवाद और धार्मिक भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाई।
    • सिद्धांत: गुरु नानक ने “नमा” की उपासना की, जिसमें सच्चाई, सेवा, और समानता का संदेश था।
  3. दर्शन और समाज सुधार
    • रामानंद (1299-1411):
      • विचारधारा: रामानंद ने भक्ति आंदोलन को प्रोत्साहित किया और राम के प्रति भक्ति को महत्वपूर्ण बताया। उन्होंने कई प्रमुख संतों को प्रभावित किया, जैसे कबीर और तुलसीदास।
    • मीराबाई (1498-1547):
      • विचारधारा: मीराबाई ने कृष्ण भक्ति पर जोर दिया और अपनी भजनों और कविताओं के माध्यम से भक्ति का प्रचार किया। उन्होंने सामाजिक कुरीतियों और जातिवाद के खिलाफ विरोध किया।

16वीं शताब्दी के धार्मिक आंदोलनों

  1. भक्त आंदोलन (जारी)
    • विचारधारा: 16वीं शताब्दी में भी भक्ति आंदोलन ने धार्मिक और सामाजिक सुधार के लिए योगदान किया। विभिन्न संतों और भक्तों ने इस काल में भक्ति की दिशा को और विस्तारित किया।
    • प्रमुख संत:
      • संत सूरदास (1478-1583):
        • विचारधारा: सूरदास ने कृष्ण भक्ति को अपनी रचनाओं का केंद्र बनाया और “सूरसागर” जैसी महत्वपूर्ण काव्य कृतियाँ लिखीं।
  2. सिख धर्म का विस्तार
    • गुरु अर्जुन देव (1563-1606):
      • विचारधारा: गुरु अर्जुन देव ने सिख धर्म की स्थापना की और “आदि ग्रंथ” की संकलन की।
      • सिद्धांत: उन्होंने सिख धर्म के ग्रंथों को संकलित किया और सिखों के धार्मिक और सामाजिक जीवन को व्यवस्थित किया।
  3. रामकृष्ण परमहंस और उनके शिष्य
    • रामकृष्ण परमहंस (1836-1886):
      • विचारधारा: हालांकि 19वीं शताब्दी में सक्रिय, रामकृष्ण परमहंस ने धार्मिक सहिष्णुता और ईश्वर के विभिन्न रूपों की पूजा की बात की।
      • सिद्धांत: उन्होंने विभिन्न धार्मिक परंपराओं की समानता का प्रचार किया और ब्रह्मा, विष्णु, और शिव के विभिन्न रूपों के बारे में बात की।
  4. धार्मिक सुधार और सामाजिक आंदोलन
    • रवि दास (1450-1520):
      • विचारधारा: रविदास ने जातिवाद और सामाजिक भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाई और ईश्वर की सार्वभौमिकता पर जोर दिया।
    • नानक का प्रभाव:
      • सिख धर्म का सामाजिक और धार्मिक सुधार: गुरु नानक और उनके शिष्यों ने सामाजिक कुरीतियों और धार्मिक भेदभाव के खिलाफ प्रचार किया।

निष्कर्ष

15वीं और 16वीं शताब्दी के धार्मिक आंदोलनों ने भारतीय समाज को गहराई से प्रभावित किया। भक्ति आंदोलन ने धार्मिक भेदभाव और जातिवाद को चुनौती दी, जबकि सिख धर्म ने धार्मिक और सामाजिक समानता का प्रचार किया। इन आंदोलनों ने भारतीय धार्मिक, सामाजिक, और सांस्कृतिक जीवन में महत्वपूर्ण परिवर्तन लाए और विभिन्न धर्मों और संस्कृतियों के बीच संवाद और समन्वय को बढ़ावा दिया।

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