संगम युग के राजवंशों का सारांश

संगम युग (लगभग 300 ईसापूर्व – 300 ईसवी) दक्षिण भारत के एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक कालखंड को दर्शाता है, जिसमें तमिल काव्य साहित्य की उत्कृष्ट कृतियाँ लिखी गईं। यह काल तीन प्रमुख राजवंशों का काल था: चोल, चेर, और पांड्य। इन राजवंशों ने दक्षिण भारत की राजनीति, संस्कृति, और व्यापार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

1. चोल राजवंश

1.1. चोल साम्राज्य

  • स्थान: दक्षिण-पूर्वी तमिलनाडु और कर्नाटक के कुछ हिस्से।
  • राजधानियाँ: थंजावुर, कांची।
  • प्रमुख शासक:
    • कधिंगल चोल: प्रारंभिक चोल साम्राज्य के संस्थापक।
    • राजराज चोल I (985-1014 ईस्वी): चोल साम्राज्य का सबसे प्रसिद्ध सम्राट, जिन्होंने दक्षिण भारत और श्रीलंका पर विजय प्राप्त की।
    • राजेंद्र चोल I (1014-1044 ईस्वी): राजराज चोल I के उत्तराधिकारी, जिन्होंने दक्षिण-पूर्व एशिया में भी विजय प्राप्त की।

1.2. चोल साम्राज्य की विशेषताएँ

  • कला और वास्तुकला: बृहदीश्वर मंदिर और एयरवर्धेश्वर मंदिर जैसे प्रमुख मंदिरों का निर्माण।
  • व्यापार: समुद्री व्यापार में महत्वपूर्ण भूमिका, विशेष रूप से श्रीलंका और दक्षिण-पूर्व एशिया के साथ।
  • साहित्य: चोल राजाओं ने साहित्यिक गतिविधियों को प्रोत्साहित किया, और संगम साहित्य के काव्यकारों को संरक्षण प्रदान किया।

2. चेर राजवंश

2.1. चेर साम्राज्य

  • स्थान: केरल और पश्चिमी तमिलनाडु।
  • राजधानियाँ: वडक्कनाडू, त्रिसूर।
  • प्रमुख शासक:
    • चेरलाथंगा: चेर साम्राज्य के प्रमुख शासक, जिन्होंने क्षेत्रीय एकता और प्रभावी प्रशासन स्थापित किया।
    • मुथुकुदाल (5वीं शताब्दी): चेर साम्राज्य के शासक, जिन्होंने संगम साहित्य में उल्लेखनीय भूमिका निभाई।

2.2. चेर साम्राज्य की विशेषताएँ

  • साहित्य और संस्कृति: चेर साम्राज्य ने संगम साहित्य में महत्वपूर्ण योगदान दिया और कला और संस्कृति को प्रोत्साहित किया।
  • व्यापार: चेर साम्राज्य ने पश्चिमी तट पर व्यापार को प्रोत्साहित किया और व्यापारिक संपर्क बनाए रखे।

3. पांड्य राजवंश

3.1. पांड्य साम्राज्य

  • स्थान: दक्षिणी तमिलनाडु, विशेष रूप से मदुरै।
  • राजधानियाँ: मदुरै।
  • प्रमुख शासक:
    • पांड्य राजा मणन (मधु वर्मन): एक प्रमुख पांड्य शासक, जिन्होंने कई विजयों के साथ साम्राज्य का विस्तार किया।
    • विजयादित्य पांड्य (6वीं शताब्दी): पांड्य साम्राज्य के शक्तिशाली सम्राट, जिन्होंने दक्षिण भारत में राजनीतिक स्थिरता स्थापित की।

3.2. पांड्य साम्राज्य की विशेषताएँ

  • कला और वास्तुकला: पांड्य राजाओं ने मदुरै के मंदिरों का निर्माण किया, जैसे कि मीणाक्षी अम्मन मंदिर।
  • साहित्य और संस्कृति: पांड्य साम्राज्य ने संगम साहित्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और तमिल भाषा और साहित्य को प्रोत्साहित किया।
  • व्यापार: पांड्य साम्राज्य ने अंतरराष्ट्रीय व्यापार में सक्रिय भूमिका निभाई और विभिन्न वाणिज्यिक संबंध बनाए।

संगम युग की विशेषताएँ

  1. साहित्य: संगम साहित्य, जो कि तमिल कवियों द्वारा लिखा गया, इस काल की सबसे महत्वपूर्ण सांस्कृतिक धरोहर है। इसमें “अईंगल” (शाही काव्य), “पत्तुप्पाटु” (दस काव्य) और “एट्टुत्तोकाई” (आठ काव्य) शामिल हैं।
  2. सामाजिक जीवन: संगम युग के साहित्य में समाज के विभिन्न पहलुओं जैसे कि वर्ग व्यवस्था, युद्ध, प्रेम, और व्यापार का विवरण मिलता है।
  3. राजनीतिक स्थिति: चोल, चेर, और पांड्य राजवंशों के बीच राजनीतिक संघर्ष और सहयोग इस काल की महत्वपूर्ण विशेषता है।
  4. व्यापार और अर्थव्यवस्था: संगम युग में व्यापार का विशेष महत्व था, विशेष रूप से समुद्री व्यापार, जो दक्षिण भारत को दक्षिण-पूर्व एशिया और अन्य क्षेत्रों से जोड़ता था।

निष्कर्ष

संगम युग दक्षिण भारत के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विकास का महत्वपूर्ण चरण था, जिसमें चोल, चेर, और पांड्य राजवंशों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। UPSC की तैयारी में इन राजवंशों की राजनीतिक, सांस्कृतिक, और आर्थिक गतिविधियों को समझना महत्वपूर्ण है क्योंकि ये दक्षिण भारतीय इतिहास और संस्कृति की जटिलताओं को स्पष्ट करते हैं।

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