मराठा साम्राज्य

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मराठा साम्राज्य भारतीय उपमहाद्वीप के इतिहास में एक महत्वपूर्ण राजनीतिक और सैन्य शक्ति था। इसकी स्थापना और विस्तार ने भारतीय राजनीति में एक नई दिशा दी।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

  • स्थापना: मराठा साम्राज्य की नींव 17वीं शताब्दी में छत्रपति शिवाजी महाराज द्वारा रखी गई।
  • भौगोलिक विस्तार: यह साम्राज्य महाराष्ट्र, गुजरात, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, और उत्तर भारत के कुछ हिस्सों में फैला था।

प्रमुख शासक और उनकी नीतियाँ

  1. छत्रपति शिवाजी महाराज (1674-1681)
    • स्थापना: मराठा साम्राज्य की स्थापना की और रायगढ़ को अपनी राजधानी बनाया।
    • सैन्य संगठन: शिवाजी ने एक संगठित सेना बनाई, जिसमें सिवल सशस्त्र बल और जंजीर के प्रमुख शामिल थे।
    • प्रशासनिक सुधार: उन्होंने स्वराज्य की अवधारणा को पेश किया और एक कुशल प्रशासनिक प्रणाली का निर्माण किया।
  2. छत्रपति संभाजी महाराज (1681-1689)
    • संगठन: शिवाजी के पुत्र संभाजी ने साम्राज्य को विस्तारित किया और मुगलों के साथ संघर्ष किया।
    • सैन्य अभियानों: संभाजी ने कई महत्वपूर्ण सैन्य अभियानों का नेतृत्व किया और मुगलों से संघर्ष किया।
  3. छत्रपति राजाराम महाराज (1689-1700)
    • संघर्ष: संभाजी की मौत के बाद, राजाराम ने साम्राज्य की रक्षा की और संघर्ष जारी रखा।
    • केंद्र स्थानांतरण: उन्होंने साम्राज्य की राजधानी को कन्होजी आंग्रे के पास सातार से शिर्डी स्थानांतरित किया।
  4. छत्रपति शाहू महाराज (1707-1749)
    • संगठन: शाहू ने साम्राज्य को पुनर्गठित किया और मराठा साम्राज्य की शक्ति को पुनः स्थापित किया।
    • प्रशासनिक सुधार: शाहू ने केंद्रीय प्रशासन को मजबूत किया और मराठा साम्राज्य की विस्तार नीति को जारी रखा।
  5. बाजी राव I (1720-1740)
    • सैन्य और नीतियाँ: बाजी राव I ने साम्राज्य की सैन्य शक्ति को और सुदृढ़ किया और कई महत्वपूर्ण विजय प्राप्त की।
    • नौसेना: उन्होंने एक मजबूत नौसेना का निर्माण किया, जिससे साम्राज्य के समुद्री मार्ग सुरक्षित रहे।
  6. चतुर्थ शिंदे (नाना साहेब) (1749-1800)
    • प्रशासन और सुधार: नाना साहेब ने साम्राज्य की वित्तीय और प्रशासनिक व्यवस्था को सुदृढ़ किया और ब्रिटिश के खिलाफ संघर्ष किया।
    • स्वराज्य की रक्षा: उन्होंने ब्रिटिशों के खिलाफ मराठा शक्ति को एकजुट किया और उनकी ताकत को चुनौती दी।

प्रशासन और संगठन

  1. सैन्य और प्रशासन
    • सैन्य संगठन: मराठा सेना को छावनी प्रणाली और पेशवा प्रणाली के तहत संगठित किया गया। इसमें अश्वगौरव (कुलकर्णी), सेनापति, और सिपाही शामिल थे।
    • प्रशासन: प्रशासनिक व्यवस्था में सुसंगठित केंद्रीय और प्रांतीय प्रशासन था। पेशवा, आमिल, और पटेल जैसे प्रशासनिक अधिकारी शासन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते थे।
  2. वित्तीय व्यवस्था
    • कर प्रणाली: भूमि कर और व्यापार कर के माध्यम से राजस्व प्राप्त किया जाता था।
    • वित्तीय सुधार: बाजी राव I और नाना साहेब ने वित्तीय व्यवस्था को सुधारने और विकास योजनाओं को लागू करने पर ध्यान केंद्रित किया।
  3. समाज और संस्कृति
    • संस्कृतियों का मिश्रण: मराठा साम्राज्य ने हिंदू और मुस्लिम संस्कृतियों का मिश्रण किया और विभिन्न सामाजिक और सांस्कृतिक परंपराओं को अपनाया।
    • धार्मिक सहिष्णुता: साम्राज्य ने धार्मिक सहिष्णुता को प्रोत्साहित किया और विभिन्न धार्मिक समूहों को सहयोग दिया।

सैन्य अभियान और विस्तार

  1. डेक्कन विजय
    • विवरण: शिवाजी महाराज ने डेक्कन क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण विजय प्राप्त की और मराठा साम्राज्य का क्षेत्रीय विस्तार किया।
    • प्रमुख विजय: सिंहगढ़ किला, कोंकण क्षेत्र, और अन्य महत्वपूर्ण क्षेत्रों की विजय।
  2. उत्तर भारत में विस्तार
    • विवरण: बाजी राव I के नेतृत्व में मराठा साम्राज्य ने उत्तर भारत के विभिन्न हिस्सों में अपने प्रभाव का विस्तार किया।
    • प्रमुख विजय: पानीपत की तीसरी लड़ाई (1761), जिसमें मराठा साम्राज्य को अहम टकराव का सामना करना पड़ा।

पतन और उत्तराधिकार

  1. ब्रिटिश संघर्ष
    • विवरण: 18वीं शताब्दी के अंत में, ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के साथ संघर्ष और सशस्त्र संघर्ष ने मराठा साम्राज्य को कमजोर किया।
    • नवीनतम संघर्ष: पानीपत की तीसरी लड़ाई (1761) और अन्य संघर्षों ने साम्राज्य की स्थिति को प्रभावित किया।
  2. संगठनात्मक गिरावट
    • विवरण: साम्राज्य की आंतरिक असहमति, प्रशासनिक भ्रष्टाचार, और नेतृत्व के अभाव ने मराठा साम्राज्य के पतन की ओर अग्रसर किया।
    • अंतिम स्थिति: 19वीं शताब्दी के प्रारंभ में, ब्रिटिशों ने मराठा साम्राज्य को पूरी तरह से समाप्त कर दिया और भारतीय उपमहाद्वीप पर अपनी पूर्ण नियंत्रण स्थापित किया।

निष्कर्ष

मराठा साम्राज्य ने भारतीय उपमहाद्वीप के इतिहास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसके शासकों ने एक संगठित प्रशासन, सैन्य शक्ति, और सामाजिक सुधारों के माध्यम से भारतीय राजनीति में गहरी छाप छोड़ी। हालांकि साम्राज्य ने अपने उच्चतम शिखर को प्राप्त किया, ब्रिटिशों के साथ संघर्ष और आंतरिक समस्याओं के कारण अंततः इसका पतन हो गया।

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